Folk Tale of Bird Ka Khau Ka Piyu Ka Le ke Pardesh Jau

बचपन की सबसे यादगार भोजपूरी कहानी 

    खूंटे में मोर दाल है,का खाउं,का पीउं,का ले के परदेस जाउं





एगो खुदबुदी चिरईया रहे।ओकरा एगो  बच्चा भी रहे।सुखाड के समय रहे।ओकरा कही से एगो बूट (चना) के दाना मिल गगईल। उ सोचलस कि बुट के दू दाल कर दी त एगो अपने खायब,आ एगो अपना बच्चा खातिर ले जायब
उ बूट लेके दाल दडरे जाता के पास गईल। जाता मे झीक मे बुट के डाल देलस आ जाता चलावे लागल। बूट दू दाल मे बट के जाता के किल्ला (बीच के खुटा) मे जाके फँस गगईल। 

खुदबुदी चिरईया ढेर कोशिश कईलस लेकिन दाल न निकलल
हार-दाड़ के उ बढई के पास गईल आ कहलस :


बढ़ई बढ़ई खूँटा चीर,
खूँटा में मोर दाल बा,
का खाऊँ, का पीऊँ,
का ले परदेश जाऊँ
बढ़ई कहलस कि हम एगो दाल खातिर खूँटा चीरी? 
हम खुटा चीरे ना जायब

तब चिरईया निराश हो के राजा के पास गईल आ अरदास कईलस;-
राजा राजा बढई डंड, 
बढई न खुटा चीडे , 
खुटा मे मोर दाल बा ।
का खाउ का पीउ का ले परदेश जाउ
राजा हँसले आ कहले कि एगो दाल खातिर हम बढई ना डंड़म

खुदबुदीया तब रानी के पास गईल आ कहलस:-
रानी रानी राजा बुझाव(समुझाव), 
राजा न बढई डंडं , 
बढई न खूटा चीरे , 
खुटा मे मोर दाल बा 
का खाउ का पीउ 
का ले परदेश जाउ
रानी कहली कि एगो दाल खातिर हम राजा के ना समुझायब

तब चिरईया साँप के पास गईल आ कहलस :-
साँप साँप रानी डस , 
रानी न राजा बुझावे,
राजा न बढई डंडे ,
बढई न खुटा चीडे ,
खुटा मे मोर दाल बा ।
का खाउ का पीउ 
का ले परदेश जाउ
साप भी इनकार कर  देलस
एही तरह खुदबुदी चिरईया
साप के शिकायत लाठी से
लाठी के शिकायत आग सै
आग के शिकायत  समुन्दर से
समुन्दर के शिकायत हाथी से
हाथी के शिकायत जाल से
जाल के शिकायत मूस (चुहा) से
आ अंत मे मूस के शिकायत बिलाई से कईलस।
बिलाई से शिकायत मे कहलस:-
बिलाई बिलाई मूस चाप
मूस बंवरि न काटे,
बंवरि न हाथी बाँधइ,
हाथी न समुद्र सोखइ,
समुद्र न भाड़ बुतावइ,
भाड़ न लाठी जारइ, 
लाठी न सर्प ठंठावइ,
सर्प न रानी डसइ, 
रानी न राजा छोड़इ, 
राजा न बढई डांटइ, 
बढई न खूंटा चीरइ,
खुंटवा में दालि बा,
का खाई, का पीई, 
का लेई, बसेरे जाई.
अंत मे बिलाई चिरई के तकलीफ समझ के मुस के चापे चलल
तब मूस डरे कहलस:-
हमका चापे उपे जन कोई
हम जाल काटब लोई।
तब जाल कहलस:-
हमका काटे उटे जन कोई
हम हाथी फासब लोई।
तब हाथी कहलस:-
हमका फासे उसे जन कोई
हम  समुन्दर सोखब लोई।
तब समुन्दर कहलन:-
हमका सोखे ओखे जन कोई 
हम आग(भाड) बुझायब लोई।
तब भाड कहलस;-
हमका बुझावे उझावे जन कोई
हम लाठी जारब लोई।
एही तरह लाठी के बाद साँप
साँप के बाद रानी
रानी के बाद राजा
राजा के बाद बढई  
तैयार भईलन आ आरी ले के खूँटा चीरे चलले
बढई के आवत देख के 
खूँटाॅ कहलस:-
हमका चीरे उरे जन कोई
हम अपने फाटब लोई।
एकरा बाद खुटाॅ अपने से फाट गगईल ।दाल दुनो बाहर आ गईल।
खुदबुदी चिरईया दुनो दाल लेके अपना बसेर के ओर उड़ गईल
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खिस्सा खतम, पईसा हजम
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खिस्सा गई अम्मा की याद आ गई... की कहानी से मिलती जुलती👆🏼यही हमारी संस्कृति है.. बचपन की यादें हैं.. ये हमारी धरोहर है.. कृपया इन्हें सहेजकर रखें, संरक्षित करें, ताकि हमारी अगली पीढ़ी इससे अछूती ना रहे। 

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