Biography of Ramdhari Singh Dinkar


ramdhari singh dinkar

रामधारी सिंह दिनकर की जीवनी || Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi

वह हिंदी का महानायक कौन था जो भारत माँ के लिए पैदा हुआ और राष्ट्रहित के लिए सूरज के रौशनी के समान अपने कवितामयी शब्दों को पूरी जिंदगी बिखेरता रहा।वह महानायक बिहार के कोख़ से निकला अनमोल रतन जो गुलामी के दौर के दस्तानो में विचारो को इतना पौस्टिक बनाया की आने वाले देश के कई पीढ़ियो का मनोबल ऊंचा करता रहेगा। यह महानायक  श्री रामधारी सिंह दिनकर जी  हैं।

आज हम उनके जीवन से जुड़े कई रोचक पहलुओ और उनके कविताओ के बारे में जानेंगे जो हमारे देश की जनता को आजादी के लिए कैसे लड़ने के लिए प्रेरित किया ,एकजुट होकर चलने के लिए मजबूर कर दिया। उन सभी बातो को आज हम यहाँ बताने की कोशिश करेंगे।   

रामधारी सिंह  "दिनकर " एक  महान  हिंदी कवि, निबंधकार ,प्रसिद्ध लेखक ,अनुवादक ,साहित्य समीक्षक, पत्रकार थे, जिनका  हमारे देश के महान आधुनिक  हिंदी के कवियों में  प्रतिभाशाली और सबसे महत्वपूर्ण स्थान  है।हिंदी के क्षेत्र में उनका विशेष योगदान  रहा है। 

दिनकर द्वारा भारत की स्वतंत्रता के लिए लिखी गई अपनी राष्ट्रवादी कविता के कारण "विद्रोह के कवि" के रूप में पहचाने जाने लगे। उनकी कविता में वीर रस का अधिक प्रयोग रहा है एवं उन्हें भूषण के बाद 'वीर रस' का सबसे बड़ा हिंदी कवि माना जाता है। 

उनके देशभक्ति से समबन्धित वीर रस की कविताये और अद्भुत प्रेरणादायक लेख जो देश की आजादी में असीम योगदान  दिया ,जिसके कारण उन्हें राष्ट्रकवि ("राष्ट्रीय कवि") के रूप में उपाधि दीया गया है। लोगो का यह मानना है कि दिनकर जी सच्चे अर्थो में राष्ट्र कवि हैं। 

रामधारी सिंह दिनकर के जीवन संबंधी तथ्य || facts about life of Shri Ramdhari Singh Dinkar

जन्म : 23 सितम्बर 1908 

बचपन का नाम -नुनुवा 

जन्मस्थान : ग्राम - सिमरिया ,जिला -बेगूसराय , बिहार 

पिता : बाबू रवि सिंह 

माता : मनरूपा देवी 

भाई :केदारनाथ सिंह , रामसेवक सिंह 

कद: 5 फीट 11 इंच 

अध्ययन क्षेत्र : संस्कृत, हिंदी, मैथिली, बंगाली, उर्दू और अंग्रेजी साहित्य

कार्य क्षेत्र : स्वतंत्रता सेनानी ,कवि , , व्यंग्यकार ,निबंधकार ,लेखक ,अनुवादक ,साहित्य समीक्षक, पत्रकार

प्रथम प्रमुख काव्य कृति : विजय संदेश (1928 )

मृत्यु : 24 अप्रैल 1974 

रामधारी सिंह दिनकर जी का प्रारंभिक जीवन || Early Life of Shri Ramdhari Singh Dinkar

रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितम्बर 1908 में सिमरिया नाम के गाँव में  हुआ था। सिमरिया गाँव, जो बिहार के बेगूसराय जिले में है। 

इनके पिता बाबू रवि सिंह एक किसान और माता मनरूप देवी गृहणी थी । इनका परिवार आर्थिक मंदी से गुजर रहा था। सिमरिया गांव गंगा के किनारे बसा हुआ है। बाबू रवि सिंह को रामचरित मानस पढ़ने और सुनने का बहुत शौक था। 

प्रत्येक शाम को गांव के लोगो के साथ मण्डली बना के बाबू रवि सिंह मानस का पाठ करते थे। जब मनरूप देवी दूसरी बार माँ बनी तब दिनकर जी का जन्म हुआ। भगवान राम की कृपा स्वरूप दूसरे पुत्र का नाम रामधारी रखा गया। दिनकर को  बचपन में प्यार से नुनुवा बुलाया जाता था। 

अभी दिनकर २ वर्ष के थे तभी उनके पिता बाबू रवि सिंह का देहांत हो गया। उनकी माता उस समय गर्भवती थी। इन हालातो में परिवार के ऊपर मुश्किलों का बोझ बहुत बढ़ गया और घर चलाना बेहद कठिन हो गया। माँ के ऊपर गृहस्थी का सारा बोझ आ गया। 

उन मुश्किल परिस्तिथियों में रिश्तेदार और गाँव के लोगो ने बहुत मदद किया। इसके बावजूद कई रातों में घर का चूल्हा नहीं जल पाता था। दिनकर के मन पर गरीबी और संघर्ष का गहरा असर पड़ा। मनरूप देवी अपने तीन बेटों बसंत सिंह ,रामधारी सिंह और सत्यनारायण सिंह के साथ हर प्रयास कर घर चलने की कोशिश कर रही थी।

तीनो भाइयों में बहुत प्रेम था। एक साथ कुश्ती के लिए जाते ,यहाँ तक की वे एक ही बर्तन में खाना भी खाते थे। 

रामधारी सिंह दिनकर की शिक्षा || Education of Shri Ramdhari Singh Dinkar

रामधारी सिंह जी की प्राथमिक शिक्षा गाँव के प्राथमिक विद्यालय से ही हुई। किन्तु आर्थिक तंगी के वजह से सबकी पढाई नहीं हो सकती थी। नुनुवा के लगन को देख बड़े भाई बसंत और छोटे भाई सत्यनारायण ने निश्चय किया कि नुनुवा की आगे की पढ़ाई जारी रहेगी और अपनी पढाई छोड़ देंगे। 

उन दिनों महात्मा गाँधी का राष्ट्रीय असहयोग आंदोलन जोरो पर था , लोग गोरी सरकार का विरोध कर रहे थे। लोग अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में उनके द्वारा चलए जा रहे विद्यालयों में अध्ययन कर रहे अपने बच्चो को निकालने लगे।

देशभक्तों ने जगह -जगह राष्ट्रीय विद्यालय खोलना शुरू कर दिया। जनता ने भी इस मुहीम को सफल बनाया,अपने बच्चों का दाखिला इन्ही विद्यालयों में कराया।  इस राष्ट्रीय आंदोलन का प्रभाव दिनकर के बालमन पर गहरा पड़ा। 

अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में बारो ग्राम में भी राष्ट्रीय मिडिल स्कूल खोला गया था। दिनकर की राय से उनका दाखिला भी वही हुआ। ये विद्यालय उनके घर से 4 km बहुत दूर था। कठिन परिस्थितियों में भी वर्ष तक घर से पैदल यात्रा कर माध्यमिक की पढाई पूरी की।

1920 में, दिनकर जी को पहली बार महात्मा गांधी को देखने का सौभाग्य मिला ।  इस समय के दौरान, उन्होंने सिमरिया में मैनरंजन लाइब्रेरी की नींव डाली ।  उन्होंने हाथों से लिखे पैम्फलेट का संपादन भी किया।

दिनकर का विवाह और शिक्षा || Education And Marriage of Shri Ramdhari Singh Dinkar

1921 में ,यानी मात्र 13 वर्ष की आयु में उनका विवाह सामवती से हो गया। दिनकर का मन पढाई में बहुत लगता था। हाई स्कूल की पढाई उन्होंने मोकामाघाट विद्यालय से प्राप्त किया।  यह विद्यालय घर से 19 km दूर था और उन दिनों गंगा घाट पार कर पैदल ही जाना पड़ता था।  सुबह ५ बजे घर से निकलते तब 10 बजे विद्यालय के समय पर पहुंचते। 

घर लौटने हेतु आखरी नौका को पाने के लिए विद्यालय से जल्दी निकलना पड़ता था और रात 9  बजे तक वे घर पहुंचते। प्रत्येक दिन रात में भोजन करने के बाद घर के सारे सदस्यों को रामचरित मानस का पाठ सुनाते। उसके बाद अपना अपना अध्ययन करते ,तब जाकर कही 11 बजे रात में सो पाते।  

1928 में मैट्रिक की पढ़ाई पूरा किया। मैट्रिक की परीक्षा में पुरे राज्य में प्रथम आये जिसके लिए उन्हें भूदेव स्वर्ण पदक मिला । आजकल ऐसे भाई कहा देखने को मिलते है ,जिन्होंने अपना सबकुछ छोड़ दूसरे के लिए मेहनत करे।हमेशा की तरह भाइयों के आर्थिक मदद से1928 में ही  दिनकर ने पटना विश्वविद्यालय में इतिहास विषय से बी. ए. के लिए दाखिला लिया। 

रामधारी सिंह जी 20 वर्ष की आयु में दस गीत लिखे जो पहला काव्यसंग्रह ‘विजय संदेश’ जो वर्ष 1928 में प्रकाशित हुआ। ये कविता दिनकर जी ने बारदोली घटना के बाद लिखा था। 1929 में यही दस गीत रीवा से प्रकाशित पत्रिका छात्रसहोदर में दुबारा बारदोली विजय के नाम से प्रकाशित हुई। 1932 में बी. ए. ऑनर्स पूरा किया। 

उनके पसंदीदा विषय इतिहास ,राजनीति शास्त्र एवं दर्शन शास्त्र रहा। उन्होंने कॉलेज के दौरान हिंदी , संस्कृत , मैथिली ,बंगाली ,उर्दू , और अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया। रामधारी सिंह "दिनकर" महान साहित्यकारों जैसे रवींद्रनाथ टैगोर, इकबाल, मिल्टन और कीट्स  से काफी  प्रभावित थे। उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर की कई कृतियों का बंगाली से हिंदी में अनुवाद भी किया।

पटना कॉलेज में अध्ययन के दौरान राहुल सांकृत्यायन ,रामवृक्ष बेनीपुरी एवं डॉ कशी प्रसाद जैसवाल जैसे महान हस्तियों से रूबरू होने का कई बार मौका  मिला।  डॉ कशी प्रसाद जैसवाल ने दिनकर जी के जीवन में बहुत मदद किया है। 

"दिनकर" शब्द रामधारी सिंह के नाम में कैसे जुड़ाव :

रामधारी सिंह जी ने हिंदी पौराणिक गाथाओं के जरिये गुलाम भारत में उनके कलम से क्रांति की चिंगारिया निकलने लगी। सबसे पहले उनकी कविताओं को बेगुसराय से प्रकाशित होने वाली पत्रिका "प्रकाश " में जगह मिली।

एक दिन संपादक ने रामधारी सिंह जी को कहा कि आप तो प्रकाश के मुख्य स्रोत है। उन्होंने सोचा प्रकाश का श्रोत तो सूरज होता है अर्थात दिनकर ,और मै रवि सिंह का पुत्र भी हूँ। उसी दिन से उन्होंने ने अपने नाम के साथ "दिनकर" को जोड़ लिया और उन्हें उसी दिन से लोग उन्हें  रामधारी सिंह "दिनकर" के नाम से जानने लगे। 

कार्यक्षेत्र :  

माँ और भाई परिवार की आर्थिक स्तिथि को लेकर चिंतित थे और चाहते थे कि दिनकर स्नातक करने के बाद सरकारी नौकरी करे और परिवार की जिम्मेदारियों में सहयोग दे। घर की हालातो की वजह से वे नौकरी की तालाश करने लगे। 

उनका मन अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध था जिसके कारण वे गैर सरकारी नौकरियों के तलाश में लगे रहे किन्तु सफलता नहीं मिल रही थी। इसी बीच उन्हें 55 रूपए मासिक वेतन पर पहली नौकरी बरबीघा हाई स्कूल में हेडमास्टर के पद पर मिला जो की एक जमींदारो द्वारा स्वचालित था। सामंती व्यवस्था के विरोध में उन्हें इस नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा। 

इसके बाद उन्हें बेरोजगारी और घर की आर्थिक तंगी से परेशान करने लगी। घर की जर्जर स्तिथि को सँभालने के लिए उन्होंने 1934 में बिहार सरकार के दफ्तर में उपरजिस्ट्रार क पद पर कार्य करने लगे। परिवार के लिए 9 वर्षो तक विभिन्न परिस्थितियों से झुझते हुए सरकारी सेवा करते रहे। 

1935 में, जब उनकी रचना "रेणुका" प्रकाशित हुई तो अंग्रेजी हुकुमत को गहरा झटका लगा की एक छोटे पद का कर्मचारी उनके खिलाफ क्रांति फैला रहा है। कोर्ट की नोटिसों का जबाब उन्होंने बखूबी दिया। मजिस्ट्रेट से कहा कि रेणुका देश की आराधना है, और बेझिझक पूछा कि क्या देशभक्ति गुनाह है। 

प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ काशी प्रसाद जायसवाल दिनकर को हमेशा अपने बेटे की तरह मानते थे। दिनकर के काव्य रचना के शुरुआती दिनों में डॉ काशी प्रसाद जायसवाल जी ने उनका  बहुत मदद किया। जब डॉ काशी प्रसाद जायसवाल का निधन 4 अगस्त 1937 को हुआ , जिसके कारण दिनकर बहुत दुखी हो गए थे। 

उन्होंने हैदराबाद से प्रकाशित होने वाली एक पत्रिका कल्पना में अपने मन के बातों को शब्द दिया और लिखा , "यह अच्छी बात थी कि जायसवाल जी मेरे पहले प्रशंसक थे। अब जब मैंने सूर्य, चंद्रमा, वरुण, कुबेर, इंद्र, बृहस्पति का  प्रेम और प्रोत्साहन पा लिया है तो  स्पष्ट हो गया है कि उनमें से कोई भी जायसवालजी जैसा नहीं था। जैसा कि मैंने उनकी मृत्यु की खबर सुनी, दुनिया मेरे लिए एक अंधेरी जगह बन गई। मुझे नहीं पता था कि मुझे क्या करना है। "

द्वंदों से झुझ रहे थे दिनकर , अगर नौकरी न करे तो परिवार का गुजारा मुश्किल हो जाता। गोरी सरकार द्वारा मात्र ४ वर्ष में बाईस तबादले किये गए। किन्तु वे अपने कलम को रुकने नहीं दिए। हुंकार , रसवन्ती ,द्वंदगीत और कलिंग विजय जैसे अद्भुत काव्य संकलन प्रकशित हुए। अंग्रेजी सरकार ने 1942 में युद्ध प्रचार विभाग में  एक और तबादला कर दिया। यहाँ 3 वर्षो का प्रत्येक दिन रोज जीने मरने जैसा था।   

एक बार माखन लाल चतुर्वेदी ने अपने भाषण में कहा कि जब हमारे राष्ट्रीय कवि चांदी के टुकड़ो पर बिकते है तो हम साहित्य में रास्ट्रीयता की बात कैसे कर सकते है। ये बाते सीधा रामधारी सिंह जी को मन में लगी और वो रात भर सो नहीं सके।1945 में उन्होंने नौकरी छोड़ योगी पत्रिका से जुड़ गए।  

देश की आजादी में योगदान :

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान दिनकर जी ने क्रन्तिकारी भावनाओ को बढ़ाने में  पुरजोर समर्थन किया और अपने वीर रस की कविताओ के माध्यम से अंग्रेजी हुकूमतों और गुलामी को लेकर आक्रोश पैदा किया। आजादी के समय उनका लगाव राजेंद्र प्रसाद , नेहरू जी जैसे अन्य राष्ट्रवादियों से ज्यादा नजदीकियाँ था। 

 गाँधी जी के सिद्धांतो को मानते तो थे , पर कही न कही स्वयं को गाँधी  जी के विचारो से अलग मानते थे। जिसका कारण मूलतः उनके कविताओ द्वारा दिए गए संदेशो से था , जो जनता और विशेष कर उन युवको में आक्रोश पैदा कर उनको आजादी के लिए प्रेरित करना था। 

1946 की उनकी प्रकशित  काव्य रचना "कुरुक्षेत्र" में , उन्होंने स्वयं इस बात को माना हैं कि युद्ध सदैव विनाशकारी होता है लेकिन उन्होंने तर्क दिया कि स्वाधीनता एवं अधिकारों के लिए युद्ध भी जरुरी है।

काव्य रचना कुरुक्षेत्र को पढ़ने के लिए क्लिक करे। 

राजनीतिक सेवा काल :

दिनकर तीन बार राज्यसभा के लिए चुने गए, और वह 3 अप्रैल 1952 से लेकर 26 जनवरी 1964 तक वहा कार्यरत रहे। 1975 के देश में इमरजेंसी के दौरान, जय प्रकाश नारायण ने रामलीला मैदान में राष्ट्रकवि दिनकर जी की कविता "सिंघासन खली करो के जनता आती है " को लाखो  लोगो के सामने सुनाकर देश में हो रहे उपद्रवों के जिम्मेदार लोगो को आगाह किया। 

उन्होंने सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और वंचितों के शोषण के उद्देश्य से सामाजिक और राजनीतिक व्यंग्य भी लिखे।

प्रशंसको के शब्द  जो दर्शाते है की रामधारी सिंह दिनकर कितने महान थे। 


आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि दिनकर जी अपने मातृभाषा के प्रेम के प्रतिक थे। उनकी लोकप्रियता हिंदी मातृभाषा के लोगो में ही नहीं बल्कि उनकी लोकप्रियता ऐसे लोगो में भी खूब थी जो हिंदी भसी नहीं थे। 

 हरिवंश राय बच्चन ने लिखा कि दिनकर जी के ,कविता, गद्य, भाषा और हिंदी के क्षेत्रो में अभूतपूर्व  योगदान एवं उनकी सेवा के लिए , उन्हें चार ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने चाहिए। 


रामबृक्ष बेनीपुरी ने लिखा कि दिनकर जी द्वारा देश में अपनी अद्भुत कविताओ द्वारा क्रांति और आंदोलनों में जान फुक रहे थे ,जिसे उन्होंने कहा कि  दिनकर देश में क्रांतिकारी आंदोलन को आवाज दे रहे हैं। 

नामवर सिंह ने लिखा कि वह वास्तव में अपनी उम्र का सूरज था।

प्रसिद्ध हिंदी लेखक काशीनाथ सिंह जी ने भी  कहा है की दिनकर साम्राज्यवाद का विरोध करने वाले  और राष्ट्रवाद के कवि थे। 

ऐसे बहुत प्रसिद्ध कवि , लेखक जिन्होंने दिनकर जी कीमहन्ता का बखान किया है और उनके देश के प्रति शसक्त सोच को नमन किया है। उनकी कविताओ में एक आकर्षण है जो लोगो में उत्साह , जोश भर देता है ,उनमें अपने लक्ष्य को पाने की ललक पैदा कर देता है। 

पुरस्कार और सम्मान || Prizes  and Honar Received by Shri Ramghari Singh DInkar 

साहित्य अकादमी पुरस्कार :1959 में उनकी कृति " संस्कृती के चार अध्याय "के लिए उन्हें सम्मानित किया गया।

पद्म भूषण सम्मान :भारत सरकार द्वारा 1959 में अभूतपूर्व हिंदी क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें  सम्मानित किया।

एलएलडी की उपाधि :भागलपुर विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें  इस उपाधि से  सम्मानित किया गया। 

विद्यावाचस्पति की उपाधि :गुरुकुल महाविद्यालय द्वारा उन्हें  इस पद से सम्मानित किया गया।

साहित्य-चूड़ामणि सम्मान  :8 नवंबर 1968 को उन्हें  राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर के द्वारा इस उपाधि सम्मानित किया गया।

ज्ञानपीठ पुरस्कार : 1972 में दिनकर को उनकी रचना  "उर्वशी" के लिए सम्मानित किया गया था। 

राज्यसभा में  मनोनीत सदस्य : दिनकर जी को 1952 में राज्यसभा का मनोनीत बनाया  गया  । 

"राष्ट्रकवि" की उपाधि  : दिनकर जी का आजादी के पहले एवं बाद में भी देश के लिए दिए गए महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें इस सम्मान से नवाज़ा गया, इस उपाधि के लिए उनके प्रसंशक दिनकर जी को असल हक़दार मानते है।  

उन्हें काशी नगरी प्रचारिणी सभा, उत्तर प्रदेश सरकार एवं भारत सरकार द्वारा  उनके द्वारा रचित महाकाव्य कुरुक्षेत्र के लिए  पुरस्कृत किया गया है ।


मरणोपरांत स्मारिका :Posthumous souvenir to Shri Ramdhari singh Dinkar

1- 30 सितंबर 1987 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा द्वारा उन्हें 79 वीं जयंती पर श्रद्धांजलि दी गई।

2 - 1999 में, दिनकर हिंदी लेखकों में से एक थे, जिन्होंने "भारत के भाषाई सद्भाव" को मनाने के लिए भारत सरकार द्वारा जारी किए गए स्मारक डाक टिकटों के सेट पर छापा था। 50 वीं वर्षगांठ के अवसर पर भारतीय संघ ने हिंदी को अपनी आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया।

3 - 1999 में,'भारत का भाषाई सद्भाव' मनाने केलिए  दिनकर जी का एक स्मारक डाक टिकट जारी किया गया था।  

4 - भारत सरकार द्वारा  दिनकर जी के 100 वे  जन्मदिवस पर खगेन्द्र ठाकुर जी द्वारा लिखित एक पुस्तक को प्रकाशित किया।

5 - पटना में दिनकर चौक को महा  कवी दिनकर के नाम पर रखा गया और वहाँ पर उनकी एक प्रतिमा  का उद्घाटन भी  किया गया और इस अवसर पर कालीकट विश्वविद्यालय में दो दिन का  राष्ट्रीय विचार-गोष्ठी  का आयोजन भी  किया गया।

6 - बिहार सरकार ने घोषित किया है कि बेगूसराय में उनके नाम पर एक हिंदी विश्वविद्यालय बनाया जाएगा। इस  विश्वविद्यालय का नाम राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर हिंदी विश्वविद्यालय होगा।.

7 - मई 2015 में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नई दिल्ली के विज्ञान भवन में रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध रचनाओं जैसे  "परशुराम की प्रतिक्षा "और  " संस्कृती के चार अध्याय " को  स्वर्ण जयंती समारोह पर  संबोधित किया।

8 - रामधारी सिंह दिनकर की रचनाये हम सभी के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में है ,जो भविष्य के लिए भी अमूल्य धरोहर के रूप में है। इन रचनाओ का बखान हम जितना करे उतना कम है। दिनकर जी की रचनाये आने वाले कवी , लेखको के लिए भी एक मार्गदर्शक के रूप राह दिखती रहेगी।  


रामधारी सिंह दिनकर जी का जीवन एवं उनकी अद्भुत रचनाएँ हम  सभी के लिए अनन्त प्रेरणा का श्रोत है। हमें उनके जीवन से कठिनाईयों से लड़ने और उससे जीतने को सिखाता है। 

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