THE GREAT INDIAN NATIONALIST POET RAMDHARI SINGH DINKAR




महान राष्ट्रवादी कवि रामधारी सिंह "दिनकर" का भारत  स्वराज दिलाने में अतुलनीय योगदान:


आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये , इस स्वतंत्रता दिवस पर हमने एक क्रान्तिकारी साहित्यकार श्री रामधारी सिंह "दिनकर" जी के महत्वपूर्ण  योगदान के बारे में जानगे। ये छोटा सा लेख इस महान  साहित्यकार एवं राष्ट्र कवि  को श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित है। 

हमारा देश 15  अगस्त 1947 को आजाद हुआ ,और इसके लिए अनगिनत लोगो ने अपने जान की बाजी लगा दी। सबने अपने- अपने  तरीको से अंग्रेजी हुकूमत से  भारत की आजादी के लिए अपना सहयोग दिया ।

महात्मा गाँधी ने अपने अहिंसात्मक आंदोलनों से आजादी में योगदान दिया तो कही भगत सिंह और चंद्र शेखर  जैसे शूरवीरो ने अपनी  जान को भारत माँ के लिए समर्पित कर अंग्रेजो से बगावत करते शहीद हो गए । 

ऐसे ही महान लोगो में  राष्ट्रवादी कवि श्री रामधारी सिंह "दिनकर " जी भी नाम आता है ,जिनकी  आत्मा राष्ट्र हित में ही बसती थी और उनके अद्भुत लेखन छमता हमेशा जनता  की आवाज़ को और अंग्रेजो के खिलाफ़  सदैव आवाज़ उठाता रहा।  

Happy Independence Day || 15th August Celebration || Tribute to Revolutionary Poet Shree Ramdhari Singh "Dinkar"


रामधारी सिंह दिनकर  नाम राष्ट्रवादी कवियों में सर्वोच्च माना  जाता हैं ,जिन्होने अपने अद्भुत एवं क्रांतिकारी लेखन से आजादी के लिए और आजादी के बाद भी पूरे जीवन काल में राष्ट्र हित के लिए लड़ते रहे।

उन्होंने अपने जीवन को हमेशा अपनी अद्भुत कविताओ  की ही तरह जिया और जनता और राष्ट्रहित  के लिए अपनी लेखनी चलाते रहे। उनका सदैव से यही मानना था कि  हमें व्यक्ति से नहीं बल्कि विचारो से लड़ना हैं।

उन्होंने अंग्रेजो के दफ्तर में निबंधन के पद पर कार्य करते हुए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ा और राष्ट्र के लिए क्रांति पैदा करना उनका स्वाभाव सा बन गया था। अंग्रेजो के रोकने पर उन्होंने अपनी नौकरी से स्तीफा दे दिया किन्तु लिखना नहीं छोड़ा। 

जब पूरा  देश 1946 के समय आजादी के लिए अंग्रेजो के सत्ता के  खिलाफ एकजुट हो रहा था। तब दिनकर जी ने भी अपने कलम की ताकत का इस्तेमाल किया और जनता की बेचैनी और आजाद होने कि तङप को अपने कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्त  कर क्रांति को शशक्त बनाया । 

दिनकर जी के अंतरात्मा से निकली  कई कविताये  जो जनता में  एक नए उम्मीद  जगाया। एकजुट होने का जज्बा पैदा किया। अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने का उत्साह पैदा किया। उन अद्भुत कविताओ में से  कुछ कविताओं को यहाँ पढ़ेंगे जो आज भी रोंगटे खड़े कर  है। 



आशा का दीपक :थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है- रामधारी सिंह "दिनकर" || Asha Ka Deepak:Thakkar baith gaye kya bhai! Manjil dur nhi hai- Ramdhari Singh "Dinkar" 




thak kar baith gaye kya bhai manjil dur nhi hai


पहली कविता जिसका  शीर्षक "आशा का दीपक" है ,जिसे  पढ़के हमें आज भी उतनी  ही प्रेरणा मिलती है  जितना की स्वराज  के समय लोगो को मिली थी। 

उन्होंने इस कविता के माध्यम से बताने की कोशिश की हम कई बार प्रयासों से थक जाते है और मंजिल के नजदीक  होके भी रुक जाते  है। 

अपने बढ़ते  कदमो को  मत  रोको। हमारी मंजिल नजदीक है ,प्रतंत्रता के बदल अब छटने लगे है। इतना संघर्ष जो तुमने अपने धरती माँ के लिया किया है , अब अपने बढ़ते हुए कदमो को मत रोको। इसका उपहार तुम्हे स्वराज के रूप में मिलने वाला है, जिसकी चमक  झिलमिला रहा  है।   

वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल, दूर नहीं है
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है 

चिनगारी बन गयी लहू की बूंद गिरी जो पग से,
चमक रहे, पीछे मुड़ देखो, चरण चिन्ह जगमग से।

शुरू हुई आराध्य भूमि यह, क्लांति नहीं रे राही
और नहीं तो पांव लगे हैं क्यों पड़ने डगमग से?

बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नहीं है ,

थककर बैठ गये क्या भाई ! मंजिल दूर नहीं है। 


अपनी हड्डी की मशाल से हृदय चीरते तम का, 
सारी रात चले तुम दुख झेलते कुलिश निर्मम का। 

एक खेय है शेष, किसी विध पार उसे कर जाओ,

वह देखो, उस पार चमकता है मंदिर प्रियतम का। 

आकर इतना पास फिर, वह सच्चा शूर नहीं है
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।

दिशा दीप्त हो उठी प्राप्त कर पुण्य-प्रकाश तुम्हारा, 

लिखा जा चुका अनल-अक्षरों में इतिहास तुम्हारा। 

जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलाएगी ही,

अंबर पर घन बन छाएगा ही उच्छवास तुम्हारा। 
और अधिक ले जांच, देवता इतना क्रूर नहीं है,

थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है। 
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रामधारी सिंह "दिनकर "
(Ramdhari Singh "Dinkar")



 वीर -  राष्ट्रवादी कवि रामधारी सिंह "दिनकर" की प्रसिद्ध कविता  | Veer - By Famous Poet Ramdhari Singh "Dinkar"


ramdhari singh dinkar best poem


सच है, विपत्ति जब आती है,कायर को ही दहलाती है,

शूरमा नहीं विचलित होते,क्षण एक नहीं धीरज खोते,

विघ्नों को गले लगाते हैं,काँटों में राह बनाते हैं।

मुख से न कभी उफ कहते हैं,संकट का चरण न गहते हैं,

जो आ पड़ता सब सहते हैं,उद्योग-निरत नित रहते हैं,
शूलों का मूल नसाने को,बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को।

है कौन विघ्न ऐसा जग में,टिक सके वीर नर के मग में

खम ठोंक ठेलता है जब नर,पर्वत के जाते पाँव उखड़।

मानव जब जोर लगाता है,पत्थर पानी बन जाता है।

गुण बड़े एक से एक प्रखर,हैं छिपे मानवों के भीतर,

मेंहदी में जैसे लाली हो,वर्तिका-बीच उजियाली हो।
बत्ती जो नहीं जलाता है,रोशनी नहीं वह पाता है।

पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड,झरती रस की धारा अखण्ड,

मेंहदी जब सहती है प्रहार,बनती ललनाओं का सिंगार

जब फूल पिरोये जाते हैं,हम उनको गले लगाते हैं।

वसुधा का नेता कौन हुआ?भूखण्ड-विजेता कौन हुआ?

अतुलित यश क्रेता कौन हुआ?नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ?
जिसने न कभी आराम किया,विघ्नों में रहकर नाम किया।

जब विघ्न सामने आते हैं,सोते से हमें जगाते हैं,

मन को मरोड़ते हैं पल-पल,तन को झँझोरते हैं पल-पल।

सत्पथ की ओर लगाकर ही,जाते हैं हमें जगाकर ही।
वाटिका और वन एक नहीं,आराम और रण एक नहीं।

वर्षा, अंधड़, आतप अखंड,पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड।

वन में प्रसून तो खिलते हैं,बागों में शाल न मिलते हैं।

कङ्करियाँ जिनकी सेज सुघर,छाया देता केवल अम्बर,
विपदाएँ दूध पिलाती हैं,लोरी आँधियाँ सुनाती हैं।

जो लाक्षा-गृह में जलते हैं,वे ही शूरमा निकलते हैं।
बढ़कर विपत्तियों पर छा जा,मेरे किशोर! मेरे ताजा!

जीवन का रस छन जाने दे,तन को पत्थर बन जाने दे।

तू स्वयं तेज भयकारी है,क्या कर सकती चिनगारी है?

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रामधारी सिंह "दिनकर "
(Ramdhari Singh "Dinkar")


दिनकर जी के शब्दो हमेशा ही प्रेरणा पूर्ण रही है। उनकी  इस कविता में विपत्ति से हमेशा लड़ने और उससे साहस के साथ सामना करने के बारे में की गए है। शूरवीर हमेशा विपत्तियों आने पे विचलित नहीं होते बल्कि  उसे सहर्ष ही स्वीकार कर मुश्किलों  में भी अपना रास्ता बना लेते है। वे विभिन्न परिस्थितियों को उल्लेख करते हुए हमें समस्याओं से लड़ने की प्रेरणा देती है। 
 
आशा करता हूँ की आप लोगो को ये  लेख पसंद आएगी। कृपया इस लेख को  अधिक से अधिक  लोगो के साथ साँझा करे।
 

धन्यवाद् 


 

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