MERI JINDAGI KE DO PEHLU : PART - 1 ( मेरी जिंदगी के दो पहलू )

                                        
एक दिन ख़ुद के लिए जी के देखो  ना ,एक दिन खुद पर लुटा के देखो ना"

                          आज मै आपसे कहूंगा की आप अपने यादो में थोड़ा पीछे जाइये, थोड़ा याद करे उन पालो को जब हम बिना किसी फ़िक्र के अपने जिंदगी के हर उन  पलो को भरपूर जिया करते थे।  जबकि हमें  उस उम्र में जिंदगी  का कोई भी तजुरबा भी न था। 

                         हम सभी को यही लगता है की हमने अपनी असली जिंदगी बचपन में ही जिया है। लेकिन आइये  ईश बात पे हम  विचार करके देखते  है। ऐसी क़या बाते  थी जिनकी वजह से हम वो बेवाक जिंदगी जिया करते थे और  ज्यो ज्यो हमारी   समझ में बढोत्तरी  होना  शुरू  हुआ और हमारी बेबाकी भी कम होती गई ।  हम बोंझ के तले दबते गए और यहाँ हम बेबाक की जिंदगी  को गहरे समुन्द्र दबा के समझदारो  की जिंदगी बिताने  लगे है। 
                        हसी अति है मुझे अपनी समझदारियों पे, क्योकि हम आपकी बेबाक जिंदगी  छोड़ के ईश  समझ  भरी जिंदगी में जीने लगे है। ये सच है की हम पैसे कमा रहे है, बहुत लोगो से मिलते हैं।  पर  हमारी वो खुशिया कहा चली गई।  पैसे कमाने को मै  गलत नहीं मनाता। ये हमारी जरुरते है, लेकिन मजबूर क्यों बने है हम? क्यों हमारी जरूरते दिनो दिन बदलती हैं, जिनको पाने में हम खुद को गवा बैठे हैं। हम सोचते है  हम कितने खुश हैं, लेकिन क्या हम खुश  हैं  ?


" हर रात हमारी सुबह के लिए जागते बित रहीं है, आँखों  में भारीपन सी  रहती  हैं। 
सोने के लिए भी खुद से कहना पड़ता है। 
दिन में इतना काम किया है रात में भी क्या उसी का मरना हैं।  
जिंदगी के परेशानियों को कल देख लेंगे। अभी थोड़ा जी  लेते हैं। 
दो पल अपनी जिंदगी से मिल लेते हैं। "

जब मै इस  भागते  जिंदगी में रास्ता भूल के अकेला पड़  जाता  हूँ, जहा मै  सिर्फ खुद को ही पाता  हूँ ।मुझे लगता है की मैं पीछे रह गया, लेकिन असल में  मै खुद से  अर्सो बाद रूबरू होता हूँ । लेकिन फिर मेरे मन में ख्याल आता है वो रास्ते बिछड़  गए, कही पीछे न हो जाऊ मै । कल  फिर सुबह की उसी भाग दौड़ में कही  पीछे  रह न जाऊ मै।  लेकिन मेरा दिल  कही न कही, फिर  उस बेबाकी से दोस्ती करना चाहता हैं । 
                
                              फिर उन्ही रास्तो  मे नजरे कुछ खोजने सी लगती थी।  हम फिर वही जिंदगी में जाना चाहते है जहा हम हाथो को फैला के दौड़ते थे  तो मन में एक  अलग  सी खनक  होती थी , जो उस ख़ुशी  की तरह होती थी, कि  ख्याल भर जेहन में आने से आँखों में चमक सी आ जाती हैं। रोगेट खड़े हो जाते है इन यादो की जिंदादिली को सोच के कि  जिंदगी के बोझ में दब के रह गए है  हम।  हमारा  क्या समझ ही कारण  है  हमारे खुसी को मारने  का? मुझे लगता है ऐसा ही होगा। 
लेकिन फिर एक ख्याल  आता की नहीं कुछ और  बाते है जो हमें रोकती होंगी । 
                                    हम पहले भी सबसे घुलमिल के रहते थे और आज तो हम और भी सामाजिक हो गए है।  हजारो लोगो से हम रोज बाते  करते है, देख के लोगो को मुस्कारते भी  है और सामने वाला भी।  लेकिन ऐसा क्यों होता है की हमारी नजरे ज्यो एक दूसरे से हटती है तो हम फिर वैसे ही  मुरझा से जाते है जैसे भुझते दीये  को एक बून्द तेल का सहारा हो। 
                                  शायद हमारी ये दुनिआ असली ही नहीं रह गई  है, हम मिलते तो हजारो से है लेकिन  हम मिलते है खयालो से बस. हम सीसे के ईश पार रहते  है  और भीड़ सीसे के उस पार।  मै सुबह के दर्पण की बात नहीं कर रहा, मै उस की बात कर रहा जिसके सामने लोग खोये से बैठे रहते है, और खोजते रहते है अपनी उन खुसियो को लगातार। अफ़सोस हम रोज ये कोशीशे करते है लेकिंन शायद वो  ख़ुशी के लम्हे है ही नहीं वहा। 
                                                 आज अचानक कुछ ऐसा हुआ की मै अपनी भागम-भाग की  जिंदगी के रस्ते से भटक गया और कुछ खुद के पालो  टकरा गया था की   फिर याद  आया  कि कल सुबह तो फिर वही जिंदगी सम्भालनी  हैं।  
          
              दोस्तों ये सच है हम अपनी जिंदगी में बहुत तेज गति से भागे जा रहे है, हो सकता है ये इतनी तेज हो जाये की हम अपनी यादो से रूबरू  ही न हो पाए।  विचार करना चाहये हमें की हम खुद को तो नहीं भूलते जा रहे। 
दोस्तों मै अगले भाग में फिर कुछ ऐसे ही  रोमांचक अनुभवों का जिक्र करूँगा, जो असल में मुझे उन भटके रास्तो से मिलते है। 
            
                 मेरे अनुभवों को पढ़ के आपको अपनी जिंदगी में कुछ पुरानी  यादो के महक आये तो  कमेंट बॉक्स में लिख के जरूर साँझा करे।  कृपया मेरे इस  अनुभवों  को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब जरूर करे. 


धन्यवाद् 

"हर कदम आपके, मेरी सूखती कलम के स्याही की तरह हैं "
जिसकी ताकत मुझे लिखने को मजबूर करती है। 

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